(नागपत्री एक रहस्य-19)

सुधा और विकास एक पल के लिए डर से गए उनकी समझ नहीं आ रहा था की क्या करे?? लेकिन कोई दूसरा रास्ता था भी नहीं, उन्होंने अपने पितरों का आशीर्वाद लिया और विकास ने बिना कुछ सोचे समझे जवाब में कहा, मैं जवाब दूंगा, लेकिन सजा भी मुझे ही मिलनी चाहियें,
                     
इतना सुनते ही वह देवी स्वरूपा अचानक प्रकट हो गयी और मुस्कराने लगी, और मुस्कराकर कहा चलो अगर ऐसा है तो पहला सवाल सुनो..... सही जवाब देना.....

यदि तुम्हे दर्शन का फल किसी और को देना हो तो किसे दोगे????
सुधा को या अपने पूर्वज को??? और यदि सजा में किसी एक को शिवधाम मिले तो किसे दोगे????
सोच कर बताओ??
यदि तुम्हारा प्यार सच्चा है तो ,,,,,
अब तो सुधा एकटक विकास की ओर देखने लगी, क्योकि सवाल ही ऐसा था...

खासकर जब स्त्री के सामने किसी चुनाव की बात आये तो वह और भी सचेत हो जाती  हैं,
लेकिन विकास भी कोई सामान्य परिवार से नहीं था, उसने पांडवो का वर्णन सन्यास के समय और यक्ष का परिक्षा लिया जाना सुन रखा था,
            
अतः वह बड़ी सावधानी से जवाब देना चाहता था, उसने जवाब दिया, यह एक ही सवाल है तो मेरा यह जवाब है की यदि दोनों फल देना हो तो मेरे पूर्वज को ही मिले।

एक पल के लिए सुधा तो चौंक गयी की, ये क्या जवाब आखिर मैं यहाँ तक आयी ही क्यों???? ये कैसा जवाब है विकास का?????
तभी पलट कर क्यों के सवाल ने जैसे उसकी मुराद पूरी कर दी, विकास ने जवाब दिया, क्योंकि हम हर पल पुण्य अपने पूर्वजो के लिए करते है और रही बात शिवधाम की तो वो भी पूर्वजो को इसलिए क्योंकि, पूर्वजो ने इन्हे अपनी बेटी की तरह अपनाया है और वह कभी इनका नुकसान नहीं चाहेंगे,
 क्योंकि अब यह हमारे पुरे परिवार की जिम्मेदारी है, मेरे पूर्वजो भी शायद यही मंजूर होगा,,,,

विकास का जवाब सुन सुधा के आँखों से जैसे अश्रुओं की बारिश होने लगी, इतना प्यारा परिवार और इतने सम्मान की उसने कल्पना भी नहीं की थी, वो क्या सोचती थी और क्या हो रहा है बिलकुल विपरीत,
           
हे भगवन उसने न जाने क्या क्या सोच रखा था, उसके मन के सभी विकार उसके आंसुओ के साथ बहते चले गए और वह अपने आप को धन्य समझने लगी।

विकास पूरी तन्मयता से सजग होकर उस देवी स्वरूपेण  स्त्री जिसका परिचय तक वह नहीं जानता था, उनके प्रश्नों का उत्तर देने में विवश था, तो वही सुधा अपने आप को अत्यंत सौभाग्यवान अनुभव कर रही थी।
                
उसे लग रहा था जैसे यदि वह यहां नहीं आती तो ना जाने जीवन के कितने वर्ष अपने परिवार को समझने में ही लगा देती।

उसे तो लग रहा था कि वह ना जाने कितने दिनों तक अपने आप को इस परिवार का अंग बनने में बिता देती, या फिर हो सकता था कि वह और लड़कियों की तरह अपने विभक्त  परिवार की मनसा रख इस अमूल्य धरोहर को खो देती।
                  
सुधा अपने विचारों में खोई हुई थी, कि तभी दूसरे सवाल के रूप में उस स्त्री ने कहा, चलो ठीक तुम्हारा यह जवाब तो मुझे प्रसन्न कर गया, किसी स्त्री का सही महत्व और उसके लिए प्रेम सिर्फ उसके पति का ही नहीं होता, विवाह के पश्चात स्त्री को परिवार में ऐसा ही मान सम्मान मिलना चाहिए।

विकास.. मैं तुम्हारे जवाब से प्रसन्न हूं, और सुधा अब तक शायद तुम्हारा गर्व भी समाप्त हो चुका होगा, तुम्हारे मन में अपने ही परिवार के सदस्य की जो छवि रही होगी वह शायद अब बदल चुकी होगी, और साथ ही साथ अब तुम परिवार का महत्व भी समझ चुकी होगी।

मैं तुम दोनों से प्रसन्न होकर तुम्हें कुछ कदम आगे चलने के लिए अनुमति प्रदान करती हूं, इतना कहते ही कुछ सीढ़ियां मंदिर की ओर जाती हुई प्रकट हुई, लेकिन आश्चर्य तो इस बात का था कि वह सीढ़ी सिर्फ मंदिर की ओर ही नहीं,अपितु उतने ही मात्रा में शिव शयन मूर्ति और विष्णु शयन छवि दोनों की ओर बढ़ते हुए दिखी, इसी के साथ अगला सवाल प्रस्तुत हुआ जो कुछ इस प्रकार था......

दूसरे सवाल में वह स्त्री अब पूरी तरह से अपनी वास्तविक स्वरूप में प्रकट होने लगी,
वह बोली अच्छा चलो मुझे यह बताओ तुम्हें समुद्र में क्या नजर आता है,यदि तुम्हारा जवाब सही हुआ तो तुम अपने किसी एक सवाल को प्रस्तुत कर सकते हो,  लेकिन यदि गलत हुआ तो तुम्हें इसी पल एक मूर्ति के रूप में यही कैद हो जाना होगा।

तब जवाब में विकास ने मुस्कुराकर कहा, देवी पिछले कुछ दिनों के सफर अपने पूर्वजों की कृपा और प्रभु दर्शन के पश्चात इतना तो जान ही चुका हूं , कि इतनी महान विभूतियों के आशीर्वाद प्राप्त करने के पश्चात अब कोई भूल संभव ही नहीं है  तो फिर सजा कैसे???
           
और रही बात सवाल की तो जवाब साफ है, कि यहां कोई समुद्र है ही नहीं, और हे महामाया आपने अपना बिना परिचय दिए हुए जो मुझसे प्रश्न किया है, इसका भेद भी मैं कह देता हूं।

वास्तव में जो आप जानना चाहती हो या है कि यदि यह समुद्र है,  और प्रश्न आपका सार्थक है तो मैं इस स्थान पर संपूर्ण सृष्टि को देख रहा हूं, और यदि आप अपना परिचय ना दें तब भी मैं आप महामाया को सादर प्रणाम करता हूं,  जिसने स्वयं देवताओं में भगवान विश्वकर्मा और दानवों में मय दानव को ऐसे अद्भुत रचना करने का वरदान दिया है, उन्हें सादर प्रणाम करता हूं।
            
हम दोनों आभारी है कि आपके दर्शन हुए, हमारा यहां आना या यूं कहे कि हमें आपके द्वारा यहां बुलाया जाना कुछ
अप्रसांगिक है, सुधा तो जैसे कुछ समझ ही नहीं पा रही थी,
वह कभी समुद्र को, कभी ब्रह्म कमल को तो कभी उन शयन  मुद्राओं के साथ उन सर्वशक्तिमान देवी को देखने का प्रयास कर रही थी, साथ ही साथ उसकी लालायित निगाहें अंतिम पट की तलाश में थी।

         

विकास का जवाब सुन वह देवी मुस्कुराई और बोली, विकास कोई दोमत नहीं कि तुम्हारा सम्बन्ध इतने अच्छे परिवार से है, लेकिन फिर भी मैं तुम्हारे जवाब को  विस्तार से सुनना चाहूंगी जो तुमने कहा उसका स्पष्टीकरण दो??
तब विकास ने मुस्कुराकर कहा देवी वर्तमान में हम सृष्टि काल के प्रथम या यूं कहे कि अंतिम और प्रथम चरण के मध्य है।
                
यह समुद्र संसार का जनक और संहार कर्ता दोनों ही है, इसी से अमूल्य रत्न और विभिन्न जीवों की उत्पत्ति होती है, और सृष्टि काल के अंत में यही समुद्र अपने ही बनाए हुए जीवन को अपने द्वारा त्यागी हुई भूमि के समेत अपने में समावेश कर लेता है।
आपके प्रश्न का मूल सार अभी तो शेष है, वह भी सुने,आशा है आपको प्रसन्नता होगी जो मैं देख पा रहा हूं।
आखिर विकास का और क्या मूल शेष रह गया था और आगे वह क्या बताना चाह रहा था???

क्रमशः.....

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1 Comments

Babita patel

15-Aug-2023 02:03 PM

Nice

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